पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/८१

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रक्तात्र ] छाती पर पत्थर घर लिया। केशव बाबू सिधार गए, रो धो के कलेजा थाम लिया। यह दुख नहीं सहा जाता, हाय !!! अब क्या होगा ? हाप हम तो हम, हमारे प्यारे राधाकृष्णदास को कौन समझाव ? काशी ही नहीं अनाप हुई, भारत माता के कर्म में आग लग गई । हाय देशहितैषिता विधवा हो गई। हाय हम क्या करें "एरे प्राण कोन सुख देखिबे को रह्यो जात । तूहू किन जात जित प्रीतम सिधरि गो"। हा! हा!! हा !!! "क्या नजर जस्मे अंदरु आया। चश्म से रोते खू आया"। दम अटकते २ टूट गया । सर पकटते २ फूट गया ! हाय हमें संसार सूना देख पड़ता है। दुनिया उजड़ गई, हाय ! इससे तो महा प्रलय हो जाती । हाय प्यारे हरिश्चंद्र ! हाय भारत भूषण !! हाय भारतेंदु !!! हा हा हा हा, अरे हम भी चलेंगे-हमसे नहीं सहा जाता। मेरे पूज्यपाद ! मेरे प्रातः स्मरणीय ! मेरे प्रेम देव ! बुलावो । स्वर्ग में तुम्हारी सेवा कौन करेगा? हा ३!!! आ! हा! हा! दिल का क्या हाल करूं । खने जिगर होते तक, हाय कौन लिखे, कौन पढ़े। अरे बचहृदय कविवचन सुधारस !!! यह क्या विष उगल दिया? अरे यह अकस्मात बषपात, हा! हा! हा! प्रेमाचार्य तो प्यारे से जा मिले अब भारत का रहार कौन करे ? क्या...? अनेक देशभक्त जो हैं ? कौन ? कहां? किसको देख के ? हा! "राका ससि षोड़स उ तारागण समुदाय । सकल गिरिन सब लाइये रबि विन राति न नाय ।" कौन अपना सर्वस्व निछावर कर देगा ? किस्के बचन दिल को हिला देंगे? हा रससिद्ध कवीश्वर ! हा भारत भक्त शिरोमणि !! हा सहृदय समूहाधगण्य !!! हा प्रेमीजन पूजित पादपीठ !!! हाय प्यारे, तुम्हारे निवास के ठौर को बोरत हैं अंसुवां बरजोरन । हाय जनवरी की ६ तारीख चाण्डाल काल । यह क्या किया ? हाय "कहंगे सबही नैन नीर भरि २ अब प्यारे हरिचंद की कहानी रहि जायगी ?" हाय मैं क्या करू, कहां जाऊ, हा! हा!! हा !!! हाय माजु भारत अनाप सब भांति भयो भारती जू भषण बिहीन दोसें मंद । हाय क्यों न प्रताप दोह बाप सों करेजो तपै भयो सुखदायक सुधा को सोत बंद । हाय भारत न हाय हाय के सिवाय कछु उरष्ठुर रुध है विषदन को बृद हाय । हाय हाय हाय हाय हरि कोन्ही बनरप कैसी शोक हरिलोकहि सिधारे हरिचंद्र हाय ॥ १ ॥ बानी प्रेमसानी सों पियूष बरसा कोन कोन चहुँ ओर जस चंद्रिका पसारे हाय परताप चतुर चकोरन को ताप हरि भारत की भू को तम कोन निरुवारे हाय ॥ तेरे बिन हेरत हिरात हियरे को चन आसुन में बूड़े जात नैनन के तारे हाय हरिचंद हाय भारत के चंद हाय बाबू हरिचंद । हरिचंद प्राणप्यारे हाय ॥ २ ॥ हा! हा!! हा!!! ताकत तो सांस को भी नही माह क्या करू । क्या बेबसी है ऐ मेरे अल्लाह क्या करू॥ खं. २, सं० ११ (१५ जनवरी, सन् १८८५ ई०)