पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/८८

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आकाशबाणी हमारे मिष्टर अंगरेजीबाज और उनके गुरू गौरण्डाचार्य में यह एक बुरा आरजा है कि जो बात उनकी समझ में नहीं आती उसे, वाहियात है (ओह नांसेंस), कह के उड़ा देते हैं । नहीं तो हमारे शास्त्रकारों की कोई बात व्यर्थ नहीं है। बहुत छोटो छोटी बातें विचार देखिये । पयश्राव के समय यज्ञोपवीत कान में चढ़ाना इसलिये लिखा है कि लटक के भीग न जाय । तिनका तोड़ने का निषेध किया है, सो इस लिये कि नख में प्रविष्ट होके दुःख न दे। दांत से नख काटना भी इसो से बजित है कि जिन्दा नाखून कट जायेगा तो डाक्टर साहब को खुशामद करनी पड़ेगी। अस्तु यह रामरसरा फिर कभी छेड़ेगे, आज हम इतना कहा चाहते हैं कि पुराणों में बहुधा लिखा है कि अमुक आकाशवाणी हुई । इस पर हमारे प्यारे बाबू साहबों का, 'यह नहीं होने सकता' इत्यादि कहना व्यर्थ है। इससे उनको अनसमझो प्रगट होती है। क्योंकि आकाश अर्थात् पोलापन के बिना तो कोई शब्द हो ही नहीं सकता। इस रीति से वचन मात्र को आकाशवाणी कह सकते हैं, और सुनिये, चराचर में व्याप्त होने के कारण ईश्वर को आकाश से एक देशो उपमा दी जा सकती हैं । बेद में भी 'खम् ब्रह्म' लिखा है और प्रत्येक आस्तिक का मन्तव्य है कि ईश्वर की प्रेरणा बिना कुछ हो ही नहीं सकता। पत्ता कही हुक्म बिना हिला है ? तो संसार भर की बातें आकाशवत् परमात्मा की प्रेरित नहीं हैं तो क्या हैं ? शब्द ब्रह्म और खम् ब्रह्म इन दोनों बातों का ठीक २ समझने वाला आकाशवाणी से कैसे चकित होगा ? यदि डियर सर (प्रिय महाशय) आस्तिक न हों तो भी यों समझ सकते हैं कि हृदय का नाम आकाश है, क्योंकि वह कोई दृश्य वस्तु नहीं है, न तत्व संमेलन से बना है। एक विज्ञानी से किसी ने पूछा था कि हृदय क्या है-उसने उत्तर दिया-no matter अर्थात् वह किसी वस्तु से बना नहीं है और यह तो प्रत्यक्ष हो है, यावत संकल्प विकल्प हैं सबका आकाश उसी में है। हमारी भाषा कवियों के शिरोमुकुट गोस्वामी तुलसीदासजी ने भी हृदयाकाश माना है "हृदय अनुग्रह इंदु प्रकाशा।' इस वाक्य में यदि हृदय को आकाश न कहें तो दयारूपी चंद्रमा का प्रकाश कहां ठहरे ? अतः हृदय में हर्ष शोक चितादि के समय जितनी तरंगें उठती हैं, सब आकाशवाणी ( अवाजे गैब ) हैं । यह तो हमारे यहां का मुहावरा है । समझदार के आगे कह सकते हैं कि रामुक पुरुष: अपने प्रियतम के वियोग में महा शोकाकुल बैठा था इतने में उसे आकाशवाणी हुई कि रोने से कुछ न होगा । उस्के मिलने का यत्न करो । ठीक ऐसे ही अवसरों पर आकाशबाणी होना लिखा है । जिसे कुछ भी बुद्धि संचालन का अभ्यास है वह भलीभांति समझ सकता हैं। हमारे उर्दू के कवि भी बहुधा किसी पुस्तक के व किसी स्मरणीय घटना के