पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/९०

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

[ प्रतापनारायणग्रंथावली ६८ क्या किया जाय जो हानि तो करें हजार हाथ, पर खटका पाया और दुम दबा के बिल की राह ली। सर्कार की बदौलत उनका आना मुश्किल जान पड़ता है पर इनका जाना कुछ हो हमारी सामर्थ्य से तो बाहर है । उनके चरित्र अखबारों द्वारा सुनने में आते हैं तो एक कहानी का सा मजा आता है और मालूम होता है कि अपने अधिछत लोगों के प्रसन्न रखने की चेष्टा करते हैं। पर इनके सुलच्छन देख २ के नीद भूख उड़ी जाती है, कि रहें हमारे घर में, खायें हमारे यहां और हमारा ही सर्वस्व तहस नहस करने को मुस्तैद । सौ बात की एक बात यह है कि उनसे तो सरकार और देशी राजा और वालंटियर बाबू हमको बचा लेंगे पर इनसे परमेश्वर के सिवा कोई बचाने वाला नहीं। पाहि! त्राहि ! 'शूलेन पाहि नो देवि पाहि खङ्गेन चाम्बिके' । ऊ हू ! "किंकरोमि क्वगच्छामि' । एक दिन जी ने कहा एक बिल्ली पाल लें तो सब दुख दूर हो जाय,परंतु बुद्धि ने कहा 'मैवंवाच्यं'-बिल्ली भी मेंव २ करती है । तुम भी आठ सौ बरस से मेंव २ करने के लतिहल हो रहे हो। फिर भला जबान से मेल कैसे हो सकता है ? ऐसा तो वर्तमान हिंदू नीति के विरुद्ध है। दूसरे तुम म्लेच्छ नहीं हो कि किसी हानिकारक के प्राण लेना बिचारी। अपनी तो शोभा यही है कि सबकी सहना पर निरे अकर्मण्य बने रहना । हमने भी समझ लिया कि ठीक है, अपना बचाव करने वाले हम कौन ? अब पाठक बतावै कि रूस बड़ा है वा मूस । खं० ३, सं० ३ (१५ मई-जून, ह० सं० १) प्रश्नोत्तर मतवाले भाई पूछते हैं-मरणान्तर जीव की क्या गति होती है ? प्रेमी उत्तर देता है-प्रत्येक बात का यथातथ्य भेद ईश्वर के सिवा कोई नहीं जानता। पर हाँ जुगत से कुछ बातें ऐसी हैं जिनको ठीक २ तो नहीं कुछ २ मनुष्य ने जान लिया है । सो इस विषय में किसी की चिट्ठी नहीं आई । समाचार नहीं मिला। हम क्या जाने क्या होता है । ईश्वर से पूछो या किसी मरे हुए के नाम तार भेजो। __ मत०-तुम तो हंसी करते हो। प्रेमी-इसमें हंसी की कौन बात है ? जब हम तुम यही नहीं जान सकते कि घर में क्या हो रहा है, अपने ही सिर में कितने बाल है, तो जो बिलकुल इस दुनियाँ से बाहर की बातें हैं उन्हें क्या जाने। मत-जानते क्यों नहीं । पोथियों में नक स्वर्ग लिखे है, सो क्या मूठ है।