पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/९१

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प्रश्नोत्तर ] प्रेमी-भाई सत्त और झूठ का निरणय भी या तो गोचर विषय में होता है या विचारणीय बातों में होता है । सो देखने छूने में तो न कभी नर्क आया न स्वर्ग । शायद आपको मालूम हो तो कृपा करके बताइये । हमको न तो भूगोल के ग्रंथों में मिला, न खगोल की पोथियों में । रहा बुद्धि का विषय सो हम तो इतना समझे हैं कि चतुर लोगों ने संसार का चरखा ठीक बना रहने के हेतु, निरे उजबक मनुष्यों को भले कामों में झुकाने को एक झूठो चाट बनाके उस्का नाम स्वर्ग धर दिया है और बुरे कामों से बचे रहने के लिये एक कल्पित होआ ठहरा के नकं २ कहने लगे हैं। अथवा जो सुख दुख से प्रयोजन हो तो संसार में दोनों पाए ही जाते हैं। किसी दूसरे लोक की क्या आवश्यकता है ? इसके अतिरिक्त और कुछ भेद हो तो ईश्वर जाने या लिखने और मानने वाले नाने। यह सुन के श्रोता साहब तो इतना कह के चल दिए कि 'नास्तिक हो'। दूसरे साहब कुछ समझ गए और बोले, अच्छा गुरू, एक बात हमें भी बतला दीजिए कि जिसके लिए हिंदू मुसलमान और क्रिस्तान प्रान खोए देते हैं वह मुक्ति वास्तव में क्या है। प्रेमी-भाई ! इस शब्द का अर्थ तो छुटकारा है। जैसे परस्त्रीगामी बल से मुक्त रहता है, फजूल खर्च धन से मुक्त रहता है इत्यादि । ईसाई या मुसलमान हो जाने पर जाति, कुल और धर्म से मुक्ति हो जाती है । कहाँ तक कहिए 'मरणांतरे सर्वतो- मुक्तिर स्ति' । पर जैसा पंडित, मौलवी और पादड़ो साहब बतलाते हैं उससे मालूम होता है कि भूत प्रेत की बहिन हैं। क्योंकि उनका भी कुछ अस्तित्व ( वजूद ) नहीं है पर विश्वासी झूठ मूठ के डर से सूखे जाते हैं। इसका भी किसी ने विश्वास योग्य वृतांत न बताया पर विश्वासी लोग उसकी चाह में डूबते रहते हैं। एक दूसरे प्रेमी बैठे थे। उन्होंने कहा, यदि प्रेम की पराकाष्ठा का नाम मुक्ति धर लें तो क्या हानि है ? उसमें भी तो संसार परमार्थादि की चिंता का सर्वथा नाश हो के केवल परमानंदमय प्रियतम से तन्मय होना होता है ।' तब पहिले प्रेमी ने कहा, 'निश्चय, यह तो प्रत्यक्ष विषय है और इसके आगे तो मुक्ति मुक्ति सब निरी तुच्छ हैं । पर पराये चेलों की मुक्ति तो हमारी ही समझ में नहीं वरंच भगवान् कालिदास जी की समझ में भी नहीं आई । उन्होंने 'कश्चित् मोक्ष मिथ्या जगत्' कहा है।' पूछने वाले महाशय बोले, 'बस साहब ! हमने भी समझ लिया कि मरने पर ईश्वर जाने क्या होता है । हमें मुक्ति की चिंता व्यर्थ है। प्रेमी-और क्या हमको चिंता करनी चाहिए ? अपनी, अपने घर की, अपनी जाति की, अपने देश की,जो हमारा धर्म है । परंतु जिन बातों में केवल ईश्वर का ही अधिकार है, उनमें हम कौन ? मुक्ति कोई वस्तु है तो वह अच्छे लोगों को माप देगा। नहीं है तो नही सही। हमें ऐसो २ बातों में व्यर्थ वाद करके अपने सांसारिक कामों की हानि