पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/९२

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली करना वा प्रेमामृतपान बिक्षेप करके आत्मा की शांति भंग करमा निरर्थक है । सुना नही, "जियत हंसी जो जगत में मरे मुक्ति केहि काज' । पुच्छक-गुरू ! तुम्हारी बातें हमें ऐसी प्यारी लगती हैं कि जी चाहता है तुम्हारे चेले हो जायें। प्रेमी-चेला होना हो तो किसी सफरदाई ( संप्रदाय ) के पास जावो। यहां तो गुरू बन के आना चाहिए 'मकतबे इश्क में जो है सो फलातूं हिकमत । कोई शागिर्द किसी का नहीं, उस्ताद हैं सब'। ऐसे हो तो सिर पर बैठे जो बातें न समझो हमसे पूछो। हम न समझें सो बताओ। वं. ३, सं० ३ ( १५ मई-जून सन् १८८५ ई.) तत्व के तत्व में अंगरेजीबाजों की भूल है तत्व शब्द का एक अर्थ यह भी है कि 'जिसमे किसी दूसरे का मेल न हो' । पर इसका ठोक २ भेद समझना रेखागणित के विंदु से भी सूक्ष्म है। यहां तक कि परमतत्व परमेश्वर का नाम है 'जोगिन परमतत्वमय भासा'। तत्व का वर्णन मोटी बुद्धि वालों की समझ मे आना बहुत ही कठिन है, क्योंकि बहुत काम केवल अनुभव से संबंध रखते हैं । हम कह सकते हैं कि यद्यपि सजनो ने दानी, कवि, भारतभक्त इत्यादि और दुष्टों ने सर्कार का द्वेषी एवं इंद्रियाराम इत्यादि शब्द उनके लिए प्रयुक्त किए, पर हमारे प्यारे भारतेंदु का ठीक तत्व किसी ने न जाना। उनकी साधारण बातो के भीतर वह बातें भरी हैं जो कहने सुनने मे नही आ सकती। उदाहरण के लिये इसी दोहे को देखिए-भरित नेह नव नीर नित, बरसत सुयस अथोर । जयति अलौकिक घन कोऊ, लखि नाचत मन मोर ।। इसका अर्थ कदाचित् एक बालक भी कह सकता है। पर उदार बुद्धि के लोग समझ सकते हैं ( यद्यपि वर्णन न कर सकें ) कि इस दोहे मे स्वादु कितना है कि यदि हम इसे परमानंदमय परमात्मा को फोटोग्राफ कहें तो अनुन्ति न होगा । तिस में भी-घन कोऊ-यह शब्द तो ऐसा है कि बस बोलने का काम नहीं। जितना डूबते जाइए याह नहीं ! अब हमारे पाठक बिचारें तो, जब कि एक व्यक्ति के एक बचन के भी केवल एक शब्द का तत्व ऐसे वैसों की समझ मे आना दुरगम है तो ईश्वर की रचना का एक मुख्य कारण तत्व और तत्व का तत्व समझना बिचारे गोरंड शिष्यो का काम है ? नहीं, यह उन्ही जगन्मन्य हमारे रिषियो का काम था जो जगत को तृणवत् गिनके मनसा वाचा कर्मणा से ब्रह्ममय हो रहे थे। यह अंगरेजीबाजी की भूल नहीं बरंच पागलपन है जो कह देते हैं कि 'हिंदुओं ने केवल ५ ही माने हैं। उसमें भी जल तत्व नहीं है। उसमें तो दो चीजें मिली हैं। हाँ, अंगरेज बड़े बुद्धिमान हैं। उन्होंने ६४ तत्व निकाले हैं।' हम यह कदापि नहीं कहते कि अंगरेज बुद्धिमान नहीं हैं। यदि बुद्धिमान न होते तो इतनी दूर हम पर राज्य करने कसे आते ? पर हां, गो