पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/१२९

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पर अपने ढंग से, नकि विदेशी ढंग से । स्मरण रक्खो कि जब तक उत्साह के साथ अपनी हो रीति-नीति का अनुसरण न करोगे तबतक कुछ न होगा। अपनी बातों को बुरी दृष्टि देखना पागलपन है। रोना निस्साहसों का काम है। अपनी भलाई अपने हाथ से हो सकती है। मांगने पर कोई नित्य डबलरोटी का टुकड़ा भी न देगा। इससे अपनपना मत छोड़ो। कहना मान जाव । आज होली है।

हां, हमारा हृदय तो दुर्दैव के वाणों से पूर्णतया होली (होल अंगरेजी में छेद को कहते हैं, उससे युक्त ) है ! हमें तुम्हारी सी जिंदादिली (सहृदयता) कहां से सूझे ?

तो सहृदयता के बिना कुछ आप कर भी नहीं सकते, यदि कुछ रोए पीटे दैवयोग से हो भी जायगा तो "नकटा जिया बुरे हवाल" का लेखा होगा। इससे हृदय में होल (छेद) हैं तो उन पर साहस की पट्टो चढ़ाओ। मृतक की भांति पड़े २ कांखने से कुछ न होगा। आज उछलने ही कूदने का दिन है। सामर्थ्य न हो तो चलो किसी हौली (मद्यालय) से थोड़ी सी पिला लावें, जिसमें कुछ देर के लिए होली के काम के हो जाओ, यह नेस्ती काम की नहीं।

वाह तो क्या मदिरा पिलाया चाहते हो ? यह कलजुग है। बड़े २ वाजपेयी पीते हैं। पीछे से बल, बुद्धि, धर्म, धन, मान, प्रान सब स्वाहा हो जाय तो बला से ! पर थोड़ी देर उसकी तरंग में "हाथी मच्छर, सूरज' जुगनू"