पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/१४२

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मांगने पर भी महाराज कहलाते हैं। हम गुणी हैं वा औगुणी यह तो आप लोग कुछ दिन में आप ही जान लेंगे, क्योंकि हमारी आपकी आज पहिली भेंट है। पर, यह तो जान रखिये कि भारतवासियों के लिये क्या लौकिक, क्या पारलौकिक मार्ग एक मात्र अगुवा हम और हमारे थोड़े से समाचारपत्र भाई ही बन सकते हैं। हम क्यों आये हैं, यह न पूछिये । कानपुर इतना बड़ा नगर सहस्रावधि मनुष्य की बस्ती, पर नागरी पत्र जो हिन्दी रसिकों को एक मात्र मन-बहलाव, देशोन्नति का सर्वोत्तम उपाय शिक्षक और सभ्यता दर्शक अत्युच्च ध्वजा यहां एक भी नहीं। भला यह हमसे कब देखी जाती है ? हम तो बहुत शीघ्र आप लोगों की सेवा में आते और अपना कर्तव्य पूरा करते।

अस्तु अभी अल्प सामर्थी अल्पवयस्क हैं, इस लिये महीने में एक ही बार आस करते हैं। हमारा आना आप के लिये कुछ हानिकारक न होगा, वरंच कभी न कभी कोई न कोई. लाभ ही पहुंचावेगा। क्योंकि हम वह ब्राह्मण नहीं हैं कि केवल दक्षिणा के लिये निरी ठकुरसुहाती बातें करें। अपने काम से काम । कोई बने वा बिगड़े, प्रसन्न रहे वा अप्रसन्न । अन्तःकरण से वास्तविक भलाई चाहते हुए सदा अपने यजमानों (ग्राहकों) का कल्याण करना ही हमारा मुख्य कर्म होगा। हम निरे मत मतान्तर के झगड़े की बातें कभी न करेंगे कि-एक की प्रशंसा दूसरे की निन्दा हो । वरंच वह उपदेश करेंगे जो हर प्रकार