पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/१५५

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चरण कमल को अर्पण कर दिया। सच है अधिक शैवता और क्या हो सकती है ! हमारे शास्त्रार्थी भाई ऐसे वर्णन पर अनेक कुतर्क कर सकते हैं। पर उनका उत्तर हम कभी पुराण प्रति-पादन से देंगे। इस अवसर पर हम इतना ही कहेंगे कि ऐसे ऐसे सन्देह बिना कविता पढ़े कभी नहीं दूर होने के । हाँ, इतना हम कह सकते हैं कि भगवान विष्णु की शैवता और भगवान शिव की वैष्णवता का आलंकारिक बर्णन है। वास्तव में विष्णु अर्थात् व्यापक और शिव अर्थात् कल्याणमय यह दोनों एक ही प्रेम स्वरूप के नाम हैं। पर उसका वर्णन पूर्णतया असम्भव । अतः कुछ कुछ गुण एकत्र करके दो स्वरूप कल्पना कर लिये गये हैं जिसमें कवियों को वचन शक्ति के लिये आधार मिले।

हमारा मुख्य विषय शिवमूर्ति है और वह विशेषतः शैवों के धर्म का आधार है । अतः इन अप्रतयं विषयों को दिग्दर्शन मात्र कथन करके अपने शैव भाइयों से पूछते हैं कि आप भगवान गंगाधर के पूजक होके वैष्णवों से किस बरते पर द्वेष रख सकते हैं ? यदि धर्म से अधिक मतवालेपन पर श्रद्धा हो तो अपने प्रेमाधार भगवान भोलानाथ को परम वैष्णव एवं गंगाधार कहना छोड़ दीजिये ! नहीं तो सच्चा शैव वही हो सकता है जो वैष्णव मात्र को आपको देवता समझे। इसी भांति यह भी समझना चाहिये कि गंगा जी परम शक्ति हैं इससे शैवों को शाक्तों के साथ भी विरोध अयोग्य है । यद्यपि