पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/१६

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फ़ैसला करना अनुचित है। यदि वास्तव में वे फक्कड़मिजाजी तथा साधारण कोटि के लिक्खाड़ थे तो यह प्रश्न हो सकता है कि कांग्रेस के जन्मदाता ह्मूम साहब, बंगाल के प्रसिद्ध देश-सेवी विद्वान् ईश्वरचंद्र जी विद्यासागर, श्रीमान् मालवीय जी, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि दिग्गज पुरुष उनके प्रति इतना प्रगाढ़ प्रेम तथा श्रद्धा क्यों रखते थे ? ईश्वरचंद्र जी विद्यासागर एक बार प्रतापनारायण जी मिश्र के घर पर मिलने आये थे। कहते हैं कि उन दोनों में काफी देर तक बँगला में बड़े प्रेम से वार्ता-लाप हुआ था। सब से रोचक बात इस प्रसंग में कही जाती है कि विद्यासागर जी को बड़ी आवभगत से लेने के बाद मिश्र जी ने उनके जल-पान के लिए दो पैसे के पेड़े मँगाये थे। इस बात पर जितना ही सोचते हैं उतनी ही हँसी आती है।

कहते हैं इलाहाबाद काँग्रेस में भी एक इसी प्रकार की घटना हुई थी। उस साल प्रतापनारायण जी कानपुर शहर के प्रतिनिधि बन कर गये थे। एक दिन वे जब अपने तंबू के बाहर खड़े थे ह्यूम साहब उधर से निकले। देखते ही मिश्र जी ने उन्हें नमस्कार किया। ह्यूम साहब ने उन्हें सप्रेम छाती से लगा लिया और कुशल-समाचार पूछा।

बतलाइए कि ह्यूम साहब ऐसे बड़े आदमी जिससे ऐसे प्रेम से मिलें तथा विद्यासागर जैसे विद्वान जिससे मिलने उसके घर पर आवें और उसके 'दो पेड़ों' का जल-पान प्रेमपूर्वक स्वीकार करें, वह क्या कोरा मसखरा हो सकता है ?