पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/१९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( १८२ )

छुवन देहु ससि मुख गुलाल मिस यहै साध बस मोरी है।
गारी गाओ रंग बरसाओ मोद मचाओ होरी है॥२४॥
हम तुम एक होंहि तन मन सों यह आनन्द अतोली है।
या मैं काऊ कछू कहै तो समझै सहज मखोली है॥
प्रेमदास अति आस सहित यह मांगत ओड़े ओली है।
पूजों इतों मनोरथ प्यारे आज बड़ौ दिन होली है॥२॥