पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

(२८)


इश प्रसिद्ध है। कभी कोई हँसी कर बैठे तो क्षमा कीजिएगा।"

'ब्राह्मण' बंद करते समय अपने जजमानों से विदा माँगते समय भी 'अंतिम संभाषण' में उन्होंने 'ब्राह्मण' की साहित्य-सेवा पर अपने विचार प्रकट किये हैं। इस सिंहावलोकन के पहले ये प्रसिद्ध शेर है:--

"दरो दीवार पै हसरत से नज़र करते हैं।
खुश रहो अहले वतन हम तो सफ़र करते हैं॥"


आगे वे कहते हैं:---

“यह पत्र अच्छा था या बुरा, अपने कर्तव्य-पालन में योग्य था अथवा अयोग्य, यह कहने का हमें कोई अधिकार नहीं है; पर, हाँ इसमें संदेह नहीं कि हिंदी-पत्रों की गणना में एक संख्या इसके द्वारा भी पूरित थी, और साहित्य को थोड़ा-बहुत सहारा इससे भी मिलता रहता थाॱॱॱॱॱॱ ।"

एवं, पंडित प्रतापनारायण ने केवल साहित्य-चर्चा को उत्तेजित करने के उद्देश्य से 'ब्राह्मण' निकालना शुरू किया था। किंतु उसके द्वारा उस समय की जनता में देश-भक्ति के भाव उत्पन्न करना तथा सामाजिक सुधार की ओर उनका ध्यान आकर्षित करना भी उनका अभीष्ट था। तभी तो 'ब्राह्मण' के पन्ने 'गो-रक्षा', 'स्वदेशी', 'कान्यकुब्ज-कुरीति-निवारण' आदि विषयों से भरे पड़े हैं।

यह होते हुए भी यही मानना पड़ता है कि 'ब्राह्मण' ने साहित्यिक सेवा सब से अधिक की है।