पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/३८

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कभी कभी सामयिक विषयों पर भी बड़े व्यंग-पूर्ण लेख 'ब्राह्मण' में निकला करते थे। 'मिडिल क्लास', 'इन्कमटैक्स', 'होली है अथवा होरी है', 'पड़े पत्थर समझ पर आपकी समझे तो क्या समझे' इस प्रकार के लेखों में से हैं। इसके सिवाय साधारण विषयों पर मुहावरेदार सीधी-सादी किंतु सजीव भाषा में बहुत से निबंध भी हुआ करते थे। इनमें से उत्तमोत्तम निबंध प्रस्तुत संग्रह में दिये जाते हैं।

इनमें से हम 'भौं', 'बालक', 'सोना', 'युवावस्था', 'द', 'ट', 'परीक्षा', 'मायावादी अवश्य नर्क में जावेंगे', 'नास्तिक', 'शिवमूर्ति', 'समझदार की मौत है', को काफी ऊँचा स्थान देते हैं। हाँ, उनकी भाषा तथा उनके भावों में इतनी प्रौढ़ता नहीं है जितनी कि पंडित बालकृष्ण भट्ट के प्रबंधों में है। फिर भी जिस उद्देश्य को सामने रख कर वे लिखे गये थे उसकी पूर्ति अच्छी तरह से हो गई है। यह उद्देश्य मनोरंजनपूर्ण शिक्षा देना तथा हिंदी की ओर लोगों की अभिरुचि उद्दीप्त करना था।


हिंदी-गद्य और प्रतापनारायण

पंडित प्रतापनाराण जी केवल उपदेशक अथवा हिंदी-प्रचारक ही नहीं थे। हिंदी में संपादन-साहित्य और स्थायी साहित्य का घनिष्ट संयोग स्थापित करके उन्होंने गद्य-शैली को सुचारु आधु-निक रूप देने में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है।

उनके समसामयिक गद्य-लेखकों में पं० बालकृष्ण भट्ट