पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/८१

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परीक्षा।

यह तीन अक्षर का शब्द ऐसा भयानक है कि त्रैलोक्य की बुरी बला इसी में भरी है। परमेश्वर न करे कि इसका सामना किसी का पड़े ! महात्मा मसीह ने अपने निज शिष्यों को एक प्रार्थना सिखाई थी, जिसको आज भी सब क्रिस्तान पढ़ते हैं, उसमें एक यह भी भाव है कि “हमें परीक्षा में न डाल, बरंच बुराई से बचा" । परमेश्वर करे सब की मुंदी भलमंसी चली जाय, नहीं तो उत्तम से उत्तम सोना भी जब परीक्षार्थ अग्नि पर रक्खा जाता है तो पहिले कांप उठता है, फिर उसके यावत् परमाणु, सब छितर बितर हो जाते हैं। यदि कहीं कुछ खोट हुई तो जल ही जाता है, घट जाता है। जब जड़ पदार्थों की यह दशा है तब चैतन्यों का क्या कहना है ! हमारे पाठकों में कदाचित् ऐसा कोई न होगा जिसने बाल्यावस्था में कहीं पढ़ा न हो । महाशय उन दिनों का स्मरण कीजिए, जब इम्तहान के थोड़े दिन रह जाते थे। क्या सोते जागते, उठते बैठते हर घड़ी एक चिन्ता चित्त पर न चढ़ी रहती थी। पहिले से अधिक परिश्रम करते थे तो भी दिनरात देवी-देवता मनाते बीतता था। देखिए, क्या हो, परमेश्वर कुशल करे। सच है, यह अवसर ही ऐसा है। परीक्षा में ठीक उतरना हर किसी के भाग्य में नहीं है !

जिन्हें हम आज बड़ा पंडित, धनी, बड़ा बली, महा देश-