पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/८४

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"हिन्दी-प्रदीप" से ज्ञात हुआ कि दिहाती भाई भी सैयद बाबा पर मधुर बानी की शीरीनी चढ़ाते हैं। हम भी मानते हैं कि कांग्रेस अभी ३ बरस की बच्ची है, उस पर रक्षा का हाथ रखना ही उन्हें योग्य है, क्योंकि यह हिन्दू-मुसलमान दोनों की हितै- षिणी है, ऐसे २ बहुत से दृष्टान्त अनुमान है कि, सभी को मिला करते होंगे जिनसे सिद्ध है कि परीक्षा का नाम बुरा ! राम न करे कि इसकी प्रचंड आंच से किसी की कलई खुले ! एक आय कवि का अनुभूत वाक्य है-

'परत साबिका साबुनहि देत खीस सी काढ़ि'

एक उर्दू कवि का यह वचन कितना हृदयग्राही है-
'इस शर्त पर जो लीजे तो हाज़िर है दिल अभी,

रंजिश न हो, फरेब न हो, इम्तिहां न हो।'

कहांतक कहें, परीक्षा सब को खलती है ! क्या ही अच्छा होता जो सब से सब बातों में सच्चे होते, और जगत् में परीक्षा का काम न पड़ा करता ! वह बड़भागी धन्य है जो अपना भरमाला लिये हुए जीवन-यात्रा को समाप्त कर दे ।


दांत

इस दो अक्षर के शब्द तथा इन थोड़ी सी छोटी २ हड्डियोंमें भी उस चतुर कारीगर ने यह कौशल दिखलाया है कि किस के मुंह में दांत हैं जो पूरा २ वर्णन कर सके। मुख की सारी