पृष्ठ:प्रतिज्ञा.pdf/१०

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काशी के आर्य-मन्दिर में पण्डित अमरनाथ का व्याख्यान हो रहा था। श्रोता लोग मन्त्र-मुग्ध-से बैठे सुने रहे थे।

प्रोफेसर दाननाथ ने आगे खिसककर अपने मित्र बाबू अमृतराय के कान में कहा—रटी हुई स्पीच है!

अमृतराय स्पीच सुनने में तल्लीन थे। कुछ जवाब न दिया।

दाननाथ ने फिर कहा—साफ़ रटी हुई मालूम होती है। बैठना व्यर्थ है। टेनिस का समय निकला जा रहा है।