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प्रतिज्ञा

कहिए; लेकिन है कुमार्ग ही। मैं इस धोखे में नहीं आने की, आज जो कुछ हो गया, हो गया, अब भूलकर भी मेरी ओर आँख न उठाइयेगा, नहीं तो मैं यहाँ न रहूँगी। यदि कुछ न हो सकेगा, तो डूब मरूँगी। ईंधन न पाकर आग आप ही आप बुझ जाती है। उसमें ईंधन न डालिये।

कमला ने मुँह लटकाकर कहा—पूर्णा, मैं तो मर जाऊँगा। सच कहता हूँ, मैं ज़हर खाकर सो रहूँगा, और हत्या तुम्हारे सिर जायगी।

यह अन्तिम वाक्य पूर्णा ने सुना था या नहीं, हम नहीं कह सकते। उसने द्वार खोला और आँगन की ओर चली। कमला द्वार पर खड़ा ताकता रहा। पूर्णा को रोकने का साहस उसे न हुआ। चिड़िया एक बार दाने पर आकर फिर न जाने क्या आहट पाकर उड़ गई थी। इतनी ही देर में पूर्णा के मनोभावों में कितने रूपान्तर हुए, वह खड़ा यही सोचता रहा। वह रोष, फिर वह हास-विलास, और अन्त में यह विराग! यह रहस्य उसकी समझ में न आता था।

क्या वह चिड़िया फिर दाने पर गिरेगी? यही प्रश्न कमला के मस्तिष्क में बार-बार उठने लगा।


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