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प्रतिज्ञा

प्रेमा---सच कहियेगा अम्माँजी, कौन ज़ोर से बोल रहा था? यह कि मैं?

माता---बहू, ज़ोर से तो तुम्हीं बोल रही हो, यह बेचारा तो बैठा हुआ है।

प्रेमा---ठीक कहती हैं आप; अपने लड़के को कौन बुरा कहता है। मेरी अम्माँ होतीं, तो मेरी डिग्री होती।

दाननाथ---अम्माँजी में यही तो गुण है कि वह सच ही बोलती है। तुम्हें शर्माना चाहिये।

माता---तुझे भूख लगी है कि नहीं। चलके खाना खा ले तो फिर झगड़ा कर। मुझसे तो अब नहीं रहा जाता। यह रोग बुढ़ापे में और लगा।

दाननाथ---तुमने भोजन क्यों न कर लिया? मैं तो दिन में दस बार खाता हूँ। मेरा इन्तज़ार क्यों करती हो। आज बाबू अमृतराय ने भी कह दिया कि तुम इन दिनों बहुत मोटे हो गये हो? एकाध दिन न भी खाऊँ तो चिन्ता नहीं।

माता---क्या कहा अमृतराय ने कि मोटे हो गये हो? दिल्लगी की होगी।

दाननाथ---नहीं अम्माँजी, सचमुच कहते थे।

माता---कहता था अपना सिर। मोटे हो गये हैं! आधी देह भी नहीं रही। आप कोतल बना फिरता है, वैसे ही दूसरों को समझता है। एक दिन बुलाकर उसे खाना-वाना क्यों नहीं खिला देते, तुमने

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