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प्रतिज्ञा

बुलाऊँगी। कुछ मुहल्ले की हैं। दस-बीस ब्राह्मणों का भोजन भी आवश्यक ही होगा।

दान॰---यहाँ देवताओं के ऐसे भक्त नहीं हैं। यह पाँच आने पैसे हैं। सवा पाव लड्डू मँगवा लो, चलो छुट्टी हुई।

प्रेमा–--राम जाने, तुम नियत के बड़े खोटे हो, भैंस से चींटीवाली मसल करोगे क्या। शाम को सवा सेर कहा था, अब सवा पाव पर आ गये। मैंने सवा मन की मानता की है।

दान॰---सच! मार डाला! मेरा तो दिवाला ही निकल जायगा।

कमलाप्रसाद ने घर में कदम रक्खा। प्रेमा ने ज़रा घूँघट आगे खींच लिया और सिर झुकाकर खड़ी हो। कमला ने प्रेमा की तरफ़ ताका भी नहीं। दाननाथ से बोले---भाई साहब, तुमने तो आज दुश्मनों की ज़बान बन्द कर दी। सब-के सब घबराए हुए हैं। अब मज़ा तो जब आए कि चन्दे की अपील खाली जाय, कौड़ी न मिले।

दान॰---उन लोगों की संख्या भी थोड़ी नहीं है, ज्यादा नहीं, तो बीस-पचीस हज़ार तो मिल ही जायँगे।

कमला---कौन, अगर पाँच सौ से ज्यादा पा जायँ, तो मूँछ मुड़ा लूँ, काशी में मुँह न दिखाऊँ। अभी एक हफ्ता बाकी है। घर-घर जाऊँगा। पिताजी ने मुक़ाबले में कमर बाँध ली है। वह तो पहले ही से सोच रहे थे कि इन विधर्मियों का रङ्ग फ़ीका करना चाहिये; लेकिन कोई अच्छा बोलनेवाला नज़र न आता था। अब आपके सहयोग से तो हम सारे शहर को हिला सकते हैं। अजी एक हज़ार लठैत तैयार हैं, पूरे एक हजार। जिस दिन महाशयजी की अपील होगी, चारों तरफ के

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