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प्रतिज्ञा

रास्ते बन्द कर दिये जायँगे। कोई जाने ही न पावेगा। बड़े-बड़ों को तो हम लोग ठीक कर लेंगे; और ऐरे-गैरों के लिये लठैत काफी हैं। अधिकांश पढ़े-लिखे आदमी ही तो उनके सहायक हैं। पढ़े-लिखे आदमी लड़ाई-झगड़े के क़रीब नहीं जाते हाँ, कल एक स्पीच तैयार रखियेगा। इससे बढ़कर हो। उधर उनका जलसा हो, इधर उसी वक्त हमारा जलसा भी हो। फिर देखिये, क्या गुल खिलता है।

दाननाथ ने पुचारा दिया--आपको मालूम नहीं कि हुक्काम सब उनकी तरफ़ हैं। हाकिम-ज़िला ने तो ज़मीन देने का वादा किया है।

कमलाप्रसाद हाकिम-ज़िला का नाम सुनकर जरा सिटपिटा गये। कुछ सोचकर बोले---हुक्काम उनकी पीठ भले ही ठोंक दें; पर रुपए देने वाले जीव नहीं है। पायें तो उलटे बाबू साहब को ही मूँड़ लें। हाँ, कलक्टर साहब का मामला बड़ा बेढब है। मगर कोई बात नहीं। दादा जी से कहता हूँ---आप शहर के दस पाँच बड़े-बड़े रईसों को लेकर साहब से मिलिये और उन्हें समझाइये कि अगर आप इस विषय में कुछ हस्तक्षेप करेंगे, तो शहर में बलवा हो जायगा।

यह कहते-कहते एकाएक कमला ने प्रेमा से पूछा--तुम किस तरफ़ हो प्रेमा?

प्रेमा ये बातें सुनकर पहले ही से भरी बैठी थी। यह प्रश्न चिनगारी का काम कर गया; मगर कहती क्या? दिल में ऐंठ कर रह गई। बोली--मैं इन झगड़ों में नहीं पड़ती। आप जानें और वह जानें। मैं दोनों तरफ़ का तमाशा देखूँगी। कहिये, अम्माँजी तो कुशल से है।

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