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प्रतिज्ञा

दाननाथ ने उदासीन भाव से कहा---मुझे ले जाकर क्या कीजिएगा। आप लोग तो हैं ही।

कमला---अजी नहीं, ज़रा चलकर रङ्ग तो देखो, एक हज़ार आदमी ऐसे तैयार कर रखे हैं, जो अमृतराय का व्याख्यान सुनने के बहाने से जायँगे, और इतना कोलाहल मचायँगे कि लाला साहब स्पीच ही न दे सकेंगे। टाँय-टाँय फिस होके रह जायगा। दो-तीन सौ आदमियों को सिखा रक्खा है कि एक-एक पैसा चन्दा देकर चले आयें। ज़रा चलकर उन सबों की बातें तो सुनो।

दान॰---अभी मेरा व्याख्यान तैयार नहीं हुआ है। उधर गया, तो फिर अधूरा ही रह जायगा।

कमला॰---वाह! वाह! इतने दिनों तक क्या करते रहे भले आदमी। अच्छा जल्दी से लिख-लिखा लो!

यह कहते हुए कमलाप्रसाद अन्दर चले गये। प्रेमा आज की रिपोर्ट सुनने के लिए उत्कण्ठित हो रही थी। बोली---आइये भैयाजी, आज तो समर का दिन है।

कमला ने मूँछों पर ताव देते हुए कहा---कैसा समर? ( चुटकी बजा कर ) यो उड़ा दूँगा।

प्रेमा---मार-पीट न होगी?

कमला॰---मार-पीट की ज़रूरत ही न पड़ेगी। हाँ, वह लोग छेड़ेंगे तो इसके लिए भी तैयार हैं। उनके जलसे में हमारे ही आदमी अधिक होंगे, इसका प्रबन्ध कर लिया गया है। स्पीच होने ही न पायेगी। रईस तो एक भी न जायगा। हाँ, दो-चार बिगड़े-दिल, जो अमृतराय के

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