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प्रतिज्ञा

मित्र है, भले ही पहुँच जायँगे; मगर उनसे क्या मिलना है। देनेवाले तो सेठ-महाजन हैं। इन्हें हमने पहले ही गाँठ लिया है।

प्रेमा को बड़ी चिन्ता हुई। जहाँ इतने विरोधी जमा होंगे, वहाँ दंगा हो जाने की प्रबल सम्भावना थी! कहीं ऐसा न हो कि मूर्ख जनता उन पर ही टूट पड़े। क्या उन्हें इन बातों की खबर नहीं है? सारे शहर में जिस बात की चर्चा हो रही है, क्या वह उनके कानों तक न पहुँची होगी? उनके भी तो कुछ न कुछ सहायक होंगे ही। फिर वह क्यों इस जलसे को स्थगित नहीं कर देते? क्यों अपनी जान के दुश्मन हुए हैं? आज इन लोगों को जलसा कर लेने दें। जब ये लोग ज़रा ठण्डे हो जाएँ, तो दो-चार महीने बाद अपना जलसा करें; वह तो हठी जीव हैं। आग में कूदने का तो उन्हें जैसे मरज़ है। क्या मेरे समझाने से वह मान जायँगे? कहीं ऐसा तो न समझेंगे कि यह भी अपने पति का पक्ष ले रही है।

दो-तीन घण्टे तक प्रेमा इसी चिन्ता में पड़ी रही। कोई बात निश्चय न कर पाती थी। दो तीन बार पत्र लिखने बैठी; पर यह सोचकर दब गई कि कहीं पत्र उन्हें न मिला तो? सम्भव है, वह घर पर न हों। आदमी उन्हें कहाँ-कहाँ खोजता फिरेगा।

चार बजे। दाननाथ अपने जत्थे के साथ अपने जलसे में शरीक होने चले। प्रेमा को उस समय अपनी दशा पर रोना आया। ये दोनो मित्र, जिनमें दाँत-काटी रोटी थी, आज एक दूसरे के शत्रु हो रहे हैं और मेरे कारण। अमृतराय से पहले मेरा परिचय न होता तो आज ऐसी लाग-डाट क्यों होती? वह मानसिक व्यग्रता की दशा में कभी खड़ी

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