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प्रतिज्ञा

ताँगा आ गया। दोनो अमृतराय के घर चलीं। वहाँ मालूम इतने कि वह दस मिनट हुए टाउनहाल चले गये। प्रेमा अब बड़े असमंजस में पड़ी। टाउनहाल में हज़ारों आदमी जमा होंगे और सब-के-सब छटे हुए शोहदे! वहाँ जाना तो उचित नहीं; लेकिन शायद अभी जलसा शुरू न हुआ हो और अमृतराय से दो-चार बातें करने का अवसर मिल जाय। ज्यादा सोच-विचार का समय नहीं था; ताँगेवाले से बोली---टाउनहाल चलो, खूब तेज़, तुम्हें एक रुपया इनाम दूँगी।

मगर ताँगे का घोड़ा दिन-भर का थका हुआ था, कहाँ तक दौड़ता? कोचवान बार-बार चाबुक मारता था; पर घोड़ा गरदन हिलाकर रह जाता था। टाउनहाल तक आते-आते बीस मिनट लग गये। दोनो महिलायें जल्दी से उतरकर हाल के अन्दर गई, तो देखा कि अमृतराय मञ्च पर खड़े हैं; और सैकड़ों आदमी नीचे खड़े शोर मचा रहे हैं। महिलाओं के लिए एक बाजू में चिकें पड़ी हुई थीं। दोनो चिक की आड़ में आ खड़ी हुई। भीड़ इतनी थी और इतने शोहदे जमा थे कि प्रेमा को मञ्च की ओर जाने का साहस न हुआ।

अमृतराय ने कहा---सज्जनो, कृपा करके जरा शान्त हो जाइये। मुझे कोई लम्बा व्याख्यान नहीं देना है। मैं केवल दो चार बातें आप से निवेदन करके बैठ जाऊँगा xxx?

कई आदमियों ने चिल्लाकर कहा---धर्म का द्रोही है।

अमृत॰---कौन कहता है मैं धर्म का द्रोही हूँ?

कई आवाजें---और क्या हो तुम? बताओ कौन-कौन-से वेद पढ़े हो?

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