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प्रतिज्ञा

कॉलेज के एक युवक ने आपे से बाहर होकर उस गुण्डे को इतने जोर से धक्का दिया कि वह कई आदमियों के सँभालने पर भी न सँभल सका। फिर क्या था, सैकड़ों आदमी छड़ियाँ, कुर्सियाँ ले-लेकर मंच की और लपके। कॉलेज के सब विद्यार्थी पहली सफ़ में बैठे हुए थे। उनका भी खून गर्म हो उठा। उन्होंने भी कुर्सियाँ उठाई। अमृतराय भी मंच से उतर आये; और विद्यार्थियों को समझाने की चेष्टा करने लगे; मगर उस वक्त कौन किसकी सुनता था? निकट था कि दोनो पक्षों में घोर युद्ध छिड़ जाय कि सहसा एक महिला आकर मंच पर खड़ी हो गई। सभी लोगों का ध्यान उसकी ओर आकर्षित हो गया। उसके विशाल नेत्रों में इतनी विनय थी, दीपक की भाँति चमकते हुए मुख-मण्डल पर इतनी याचना थी कि कुर्सियाँ ऊपर उठी रह गईं। डण्डे नीचे आ गये। प्रत्येक हृदय में यह प्रश्न हुआ---यह युवती कौन है? यह मोहनी कहाँ से अवतरित हो गई? सभी चकित होकर उसकी ओर ताकने लगे।

महिला ने प्रकम्पित स्वर से कहा---सज्जनो, आपके सम्मुख आपको बहन---आपकी एक कन्या खड़ी आपसे एक भिक्षा माँग रही है। उसे निराश न कीजियेगा x x x ।

एक वृद्ध महाशय ने पूछा---आप कौन हैं?

महिला---मैं आपके शहर के रईस लाला बदरीप्रसाद की कन्या हूँ; और इस नाते से आपकी बहन और बेटी हूँ। ईश्वर के लिए बैठ जाइये। बहन को क्या अपने भाइयों से इतनी याचना करने का भी अधिकार नहीं है? यह सभा आज इसलिए की गई है कि आपसे इस

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