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प्रतिज्ञा

ऐसी उपयोगी संस्था का विरोध करते हुए उसे अब स्वयं लजा आ रही थी। वह इस अपराध को अपने ऊपर न लेकर मन्त्र-दाताओं के ऊपर छोड़ रहा था।

प्रेमा ने इसी तरह कोई आध घण्टे तक अपनी मधुर वाणी, अपने निर्भय सत्य प्रेम और अपनी प्रतिमा से लोगों को मन्त्र-मुग्ध रखा। उसका आकस्मिक रूप से मंच पर आ जाना जादू का काम कर गया। महिला का अपमान करना इतना आसान न था, जितना अमृतराय का। पुरुष का अपमान एक साधारण बात है। स्त्री का अपमान करना, आग में कूदना है। फिर स्त्री भी कौन? शहर के प्रधान रईस की कन्या! लोगों के विचारों में क्रान्ति-सी हो गई। जो विघ्न डालने आये थे, वे भी पग उठे। जब प्रेमा ने चन्दे के लिए प्रार्थना करके अपना अंचल फैलाया, तो वह दृश्य सामने आया, जिसे देखकर देवता भी प्रसन्न हो जाते। सबसे बड़ी रकमें उन गुण्डों ने दी, जो यहाँ लाठी चलाने आये थे। गुण्डे अगर किसी की जान ले सकते हैं, तो किसी के लिए जान दे भी सकते हैं। उनको देखकर बाबुओं को भी जोश आया। जो केवल तमाशा देखने आये थे, वे भी कुछ-न-कुछ दे गये। जन-समूह विचार से नहीं, आवेश से काम करता है। समूह में ही अच्छे कामों का नशा होता है और बुरे कामों का भी। कितने ही मनुष्य तो घर से रुपए लाये। सोने की अँगूठियों, ताबीजों और कण्ठों का ढेर लग गया, जो गुण्डों की कीर्ति को उज्ज्वल कर रहा था। दस-बीस गुण्डे तो प्रेमा के चरण छूकर घर गये। वे इतने प्रसन्न थे, मानो तीर्थ करके लौटे हों।

सभा विसर्जित हुई, तो अमृतराय ने प्रेमा से कहा---यह तुमने

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