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प्रतिज्ञा

सड़्कोचपूर्ण---तुम तो बहन बच्चों की-सी बातें करती हो। लड़कियों के विवाह में साल-दो-साल का विलम्ब हो जाता है, तो चारो ओर हँसी होने लगती है। लड़कों का विवाह कभी न हो, तो भी कोई नहीं हँसता। लोक-रीति भी कोई चीज़ है।

सुमित्रा---अंगरेज़ों में बहुत-सी औरतें क्वाँरी रह जाती हैं, तो क्या होता है? क्या वे भ्रष्ट होती हैं?

पूर्णा--किसी के दिल का हाल कोई क्या जानता है बहन! औरत अबला होती है---एक रक्षक के बिना उसका जीवन सुख और शान्ति से नहीं कट सकता।

सुमित्रा--तो फिर यह मिसें कैसे क्वाँरी रह जाती हैं?

पूर्णा---इसीलिए कि वे जीवन को विलास-पूर्वक काटना चाहती हैं, या सन्तान के लालन-पालन का कष्ट नहीं उठाना चाहती; या किसी से दबकर न रहना चाहती होंगी।

सुमित्रा---अच्छा, तुम्हारे मामाजी क्यों स्त्री से दबते हैं? बड़े दुबले-पतले मरियल-से आदमी थे? और तुम्हारी मामीजी भारी-भरकम स्त्री थीं?

पूर्णा---अरे नहीं बहन, मामीजी तो ऐसी दुबली-पतली थीं कि फूँक दो तो उड़ जायँ; और मामाजी तो पूरे भीम थे। पक्की सवा सेर तो उनकी ख़ुराक थी। मगर मामी की आँखों के इशारे पर चलते थे। क्या मजाल कि अपनी मर्जी से एक कौड़ी भी खर्च करें। दिन भर के बाद भी जजमानी से लौटते, तो खाना घर ही पर खाते।

सुमित्रा--तो वह निर्बुद्धि होंगे।

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