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प्रतिज्ञा

रहा, तो खड़े लील जाय, सरकार खड़े लील जाय। थर-थर काँपित है बहूजी। बाबूजी से तौन इतना नहीं डेराइत हैं।

सुमित्रा---तो तू जन्म का लतखोर है। भाग, जा कह दे अपनी अचकन ले जायँ। क्या पैर में मेंहदी लगी है? यह ज़रूर कहना।

कहार---जाइत हे सरकार, आज भले का मुँह नाहीं देखा जान परत है।

कहार चला गया तो पूर्णा ने कहा---सखी, तुम छेड़-छेड़ लड़ती हो। मैं तो यहाँ से भागी जाती हूँ।

सुमित्रा ने उसका अञ्चल पकड़ लिया--भागती कहाँ हो? ज़रा तमाशा देखो! क्या शेर हैं जो खा जायँगे।

पूर्णा---क्रोध में आदमी अन्धा हो जाता है बहन! कहीं कोई कुवचन कह बैठें तो?

सुमित्रा---कुवचन कह बैठेंगे, तो कुवचन सुनेंगे।

पूर्णा---और जो हाथ चला दिया?

सुमित्रा---हाथ क्या चला देंगे, कोई हँसी है? फिर सूरत न देखूँगी।

कमलाप्रसाद के खड़ाऊँ की आहट सुनाई दी। पूर्णा का कलेजा धक्-धक् करने लगा; और सुमित्रा भी एक क्षण के लिए सिट-पिटा-सी गई; पर शीघ्र ही वह सँभल बैठी और इस भाँति सतर्क हो गई, जैसे कोई फिकैत बादी की चोट रोकता है।

कमला ने कमरे में कदम रखते ही कठोर स्वर में कहा---बैठी गप्पें लड़ा रही हो। ज़रा-सी अचकन माँग भेजी, तो उठते न बना।

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