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प्रतिज्ञा

काम नियम-विरुद्ध न करते। जीवन का सद‍्व्यय कैसे हो, इसका उन्हें सदैव ध्यान रहता था। धुन के पक्के आदमी थे। एक बार कोई निश्चय करके उसे पूरा किये बिना न छोड़ते थे। वकील थे; पर इस पेशे से उन्हें प्रेम न था। मुवक्किलों की बातें सुनने की अपेक्षा विद्वानों की मूक वाणी सुनने में उन्हें कहीं अधिक आनंद आता था। बनाये हुए मुक़दमें भूलकर भी न लेते थे। लेकिन जिस मुक़दमे को ले लेते थे, उसके लिए जान लगा देते थे, स्वभाव से दयालु थे, व्यसन कोई था नहीं, धन-सञ्चय की इच्छा भी न थी, इसलिए बहुत थोड़े मेहनताने में राज़ी हो जाते थे। यही कारण था कि उन्हें मुक़दमों में हार बहुत कम होती थी। उनकी पहली शादी उस वक्त हुई थी, जब वह कॉलेज में पढ़ते थे। एक पुत्र भी हुआ था; लेकिन स्त्री और पुत्र दोनों प्रसव-काल ही में संसार से प्रस्थान कर गए। अमृतराय को बहन से बहुत प्रेम था। उन्होंने निश्चय किया, अब कभी विवाह न करूँगा; लेकिन जब बहन का विवाह हो गया और माता-पिता की एक सप्ताह के अंदर हैजे से मृत्यु हो गई, तो अकेला घर दु:खदायी होने लगा। दो साल तक देशाटन करते रहे। लौटे तो होली के दिन उनके ससुर ने उन्हें भोजन करने को बुलाया। वह अमृतराय के शील स्वभाव पर पहले ही से मुग्ध थे। उनकी छोटी लड़की प्रेमा सयानी हो गई थी। उसके लिए अमृतराय से अच्छा वर उन्हें दूसरा दिखाई न दिया। प्रेमा से साक्षात् कराने ही के लिए उन्होंने अमृतराय को बुलाया था। दो साल पहले अमृत राय ने प्रेमा को देखा था। तब यह बंद कली, अब एक विकसित कुसुम थी, जिसकी छटा आँखों को लुभाती थी। ह्रदय में प्रेम का अंकुर जम गया।

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