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प्रतिज्ञा

बढ़ आई। उसकी दशा उस मनुष्य की-सी हो गई, जिसने अनजाने मैं किसी बालक का पैर कुचल दिया हो; और जो उसे वेदना से छटपटाते देख, जल्दी से दौड़कर उसे गोद में उठा ले। कमलाप्रसाद जिस दिन साड़ी लाये थे, उसी दिन से पूर्णा को कुछ शंका हो गई थी; पर उसने इसे पुरुषों का विनोद समझ लिया था। अतएव इस समय यह प्रेमालाप सुनकर वह भयभीत हो गई। घबड़ाई हुई आवाज़ से बोली---ऐसी बातें न कहो बाबूजी। मेरा लोक और परलोक मत बिगाड़ो। फिर मैं सचमुच मरने थोड़े ही जा रही हूँ। कहीं न कहीं तो रहूँगी ही। कभी-कभी आती रहूँगी। मगर इस समय मुझे जाने दो। मेरी बदनामी से क्या तुम्हें दुःख न होगा?

कमला॰---पूर्णा, नेकनामी और बदनामी सब ढकोसला है। प्रेम ईश्वर की प्रेरणा है, उसको स्वीकार करना पाप नहीं, उसका अनादर करना पाप है। मुझे ईश्वर ने धन दिया है, एक से एक रूपवती स्त्रियों को नित्य देखता हूँ। धन के बल से जिसे चाहूँ अपनी वासना का शिकार बना सकता हूँ; पर आज तक क़सम ले लो जो किसी की ओर आँख उठाकर भी देखा हो। मेरे मित्र लोग मुझे बूढ़े बाबा कहा करते हैं। सुमित्रा को आये तीन साल हो गये; पर उसे कभी मैंने प्रेम की दृष्टि से नहीं देखा। मगर तुम्हें देखते ही मुझे ऐसा मालूम हुआ, मानो मेरी आँखों के सामने से परदा हट गया। ऐसा जान पड़ा, मानो तुम मेरे हृदय-मन्दिर में बहुत दिनों से बैठी हो। मगर मैं अज्ञान के कारण इस वेदना का रहस्य न समझ सकता था। बस, जैसे कोई भूली हुई बात याद आ जाय। अब कितना चाहता हूँ कि तुम्हें भूल जाऊँ,

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