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प्रतिज्ञा

पूर्णा ने सिसकते हुए कहा---बाबूजी, तुम्हारे पैरों पड़ती हूँ, मुझे जाने दो। मेरा जी न-जाने कैसा घबड़ा रहा है।

कमला ने सिर ठोंककर कहा---हाय, फिर वही बात! अच्छी बात है। जाओ, अब एक बार भी बैठने को न कहूँगा।

पूर्णा ज्यों की त्यों बैठी रही। उसे किसी भीषण परिणाम की शङ्का हो रही थी।

कमला ने कहा---अब जाती क्यों नहीं हो? मैंने तुम्हें बाँध तो नहीं लिया है।

पूर्णा ने कमला की ओर कातर नेत्रों से देखा और सिर झुकाकर कहा---वायदा करते हो कि अपने प्राणों की रक्षा करते रहोगे?

कमला ने उदासीन भाव से कहा---तुम्हें मेरे प्राणों की रक्षा की क्या परवाह! जिस तरह तुम्हारे ऊपर मेरा कुछ जोर नहीं है, उसी तरह मेरे ऊपर भी तुम्हारा कोई ज़ोर नहीं है। या तुम्हें भूल ही जाऊँगा, या प्राणों का अन्त ही करूँगा; मगर इससे तुम्हारा क्या बनता-बिगड़ता है। जी में आये ज़रा-सा शोक कर लेना, नहीं वह भी न करना। मैं तुमसे गिला करने न आऊँगा।

पूर्णा ने मुस्कराने की चेष्टा करके कहा--तो इस तरह तो मैं न जाऊँगी।

कमला---इसका यह आशय हुआ कि तुम मुझे न जीने दोगी, न मरने। तुम्हारी इच्छा है कि सदैव तड़पता रहूँ। यह दशा मुझसे न

सही जायगी। तुम जाकर आराम से लेटो और मेरी चिन्ता छोड़ दो। मगर नहीं, यह मेरी भूल है, जो मैं समझ रहा हूँ कि तुम मेरे प्राणों

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