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प्रतिज्ञा

बात जानकर ही कमलाप्रसाद ने यह अभिनय किया था। पूर्णा ने तलवार उसके हाथ से छीन ली और बोली---मैं तो तुमसे कोई प्रमाण नहीं माँग रही हूँ।

'फिर तुमने माया-जाल कैसे कहा?'

'भूल हुई, क्षमा करो।'

'अभी तुम्हें कुछ सन्देह हो तो मैं उसे मिटाने को तैयार हूँ। इससे उत्तम मृत्यु मेरे लिए और क्या हो सकती है कि अपने प्रेम की सत्यता का प्रमाण देते हुए तुम्हारे सामने प्राणों का उत्सर्ग कर दूँ?'

पूर्णा ने तलवार को म्यान में रखते हुए कहा---तुम इसी तलवार से मेरे जीवन का अन्त कर सकते तो कितना अच्छा होता? मुझे विश्वास है कि मैं ज़रा भी न झिझकती, सिर झुकाये खड़ी रहती।

यह वाक्य कुटिल कमला के हृदय में भी चुभ गया। एक क्षण के

लिए उसे अपनी नीचता पर ग्लानि आ गई। गद् गद् कण्ठ से बोला---अगर ब्रह्मा ने भी मेरे हाथों तुम्हारी हत्या लिखी होती, अगर उस हत्या के पुरस्कार में मुझे त्रैलोक्य का राज्य, स्वर्ग की सारी अप्सराएँ और देवताओं की सारी विभूतियाँ मिलती होती, तो भी मैं तुम्हारे पवित्र शरीर से रक्त की एक बू़ँद भी न नहा सकता। यदि मेरी आत्मा कलुषित हो जाती तो भी मेरा हाथ तलवार न पकड़ सकता। तुमने इस वक्त बड़ी कड़ी बात कह डाली पूर्णा! जरा मेरी छाती पर हाथ रखकर देखो, कैसी धड़क रही है। एक हौल-दिल-सा हो रहा है। देखो उस तरफ पानदान रक्खा है, एक पान बनाकर खिला दो। इसी को याद करके दिल को शान्त करूँगा।

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