पृष्ठ:प्रतिज्ञा.pdf/१७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
प्रतिज्ञा

पूर्णा ने पान के दो बीड़े बनाकर कमला को देने के लिए हाथ बढ़ाया। कमला पान लेकर कहा---भोजन के बाद कुछ दक्षिणा मिलनी चाहिये।

पूर्णा ने विनोद करके कहा---प्रेमा होती तो उनसे कुछ दक्षिणा दिला देती। जब आएँगी तब दिला दूँगी।

कमला पान बनाता हुआ बोला---मेरी दक्षिणा यही है कि यह बीड़े मेरे हाथ से खा लो।

पूर्णा---ना! मैं ऐसी दक्षिणा नहीं लेती। तुम्हारी कौन चलाए, बीड़ो पर कोई मन्त्र फूँक दिया हो। पुरुष इस विद्या में भी तो निपुण होते हैं। मैं पक्का इरादा करके आई थी कि द्वार पर खड़ी-खड़ी तुमसे यहाँ से जाने की बात करके चली आऊँगी; पर तुमने कुछ ऐसा मन्त्र मारा कि सब कुछ भूल गई।

कमला ने बीड़े उसके मुँह के समीप ते जाकर कहा---मैं अपने ही हाथ से खिलाऊँगा।

'मेरे हाथ में दे दो।'

'जी नहीं, गुरुजी ने मुझे यह पाठ नहीं पढ़ाया है।'

'कोई शरारत तो न करोगे?'

पूर्णा ने मुँह खोल दिया और कमला ने उसे पान खिला दिया।

पूर्णा की छाती धक-धक कर रही थी कि कमला कहीं कोई नटखटी न कर बैठे। मगर कमला इतना बेशऊर न था कि समीप आते हुए शिकार को दूर ही से चौंका देता, उसने पान खिला दिया; और चारपाई पर बैठकर बोला---अब यहाँ से कहीं जाने का नाम मत लेना।

१६६