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प्रतिज्ञा

सब्ज़-बाग़ दिखाएगा, तरह-तरह के बहाने करेगा; मगर ख़बाही उसकी बातों में न आना! पक्का जालिया है। रही मैं! मैंने तो मन में ठान लिया है कि लाला के मुँह में कालिख पोत दूँगी। बला से मेरी आबरू जाय---बला से मेरा सर्वनाश हो जाय; मगर इन्हें कहीं मुँह दिखाने लायक़ न रक्खूँगी।

पूर्णा ने आँखों में आँसू भरे हुए कहा---मैं ही क्यों न मुँह में कालिख लगाकर कहीं डूब मरूँ बहन!

सुमित्रा---तुम्हारे डूब मरने से मेरा क्या उपकार होगा? न वह अपना स्वभाव छोड़ सकते हैं; न मैं अपना स्वभाव छोड़ सकती हूँ। न वह पैसों को दाँत से पकड़ना छोड़ेंगे और न मैं पैसों को तुच्छ समझना छोडूँगी। उन्हें छिछोरपन से प्रेम है, अपने मुँह मियाँ-मिट्ठू बनने का ख़ब्त। मुझे इन बातों से घृणा है। अब तक मैंने उन्हें इतना छिछोरा न समझा था। समझती थी, वह प्रेम कर सकते हैं। स्वयं उनसे प्रेम करने की चेष्टा करती थी; पर रात जो कुछ देखा उसने उनकी रही-सही बात भी मिटा दी। और सारी बुराइयाँ सह सकती हूँ; किन्तु लम्पटता का सहन करना मेरी शक्ति के बाहर है। मैं ईश्वर को साक्षी देकर कहती हूँ पूर्णा, तुम्हारी ओर से कोई शिकायत नहीं। तुम्हारी तरफ़ से मेरा दिल बिलकुल साफ़ है। बल्कि मुझे तुम्हारे ऊपर दया आती है। मैंने यदि क्रोध में कोई कठोर बात कह दी हो, तो क्षमा करना। जलते हुए हृदय से धुएँ के सिवा और क्या निकल सकता है?

पूर्णा का सारा शरीर थर-थर काँप रहा था, मानो पृथ्वी नीचे धँसी जाती थी। उसका मन कभी इतना दुर्बल न हुआ था। वह कोई आपत्ति

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