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प्रतिज्ञा

न कर सकी। उसका जीवन इस समय सुमित्रा की मुट्ठी में था। सुमित्रा की जगह वह होती, तो क्या वह इतनी उदार हो सकती थी? कदापि नहीं। वह उसे विष खिला देती, उसके गले पर छुरी चला देती। इस दया ने अभागिनी पूर्णा को इतना प्रभावित किया कि वह रोती हुई उसके पैरों पर गिर पड़ी; और सिसकियाँ भरकर बोली—बहन, मुझ पर दया करो!

सुमित्रा ने उसे उठाकर छाती से लगाते हुए कहा—मैंने तो कह दिया बहन कि मेरा दिल तुम्हारी ओर से साफ़ है। बस, अब तो ऐसी युक्ति निकालनी चाहिए कि इस धूर्त से पीछा छूटे। उसे तुम्हारी ओर ताकने का भी साहस न हो। उसे तुम अबकी कुत्ते की भाँति दुत्कार दो।

पूर्णा ने दीन स्वर में कहा—बहन, मैं क्या करती? मेरी जगह तुम होती, तो शायद तुम भी वही करती जो मैंने किया। उन्होंने अपने प्राण दे डालने की धमकी दी है।

सुमित्रा ने हँसकर कहा—तो क्या तुम समझती हो, यह धमकी सुनकर मैं भी उसके सामने सिर झुका देती। हज़ार बार नहीं! मैं साफ़ कहती, जरूर प्राण दे दो। कल देते हो तो आज ही दे दो। तुमसे न बने तो लाओ मैं मौत के घाट उतार दूँ। इन धूर्त लम्पटों का यह भी एक लटका है। इसी तरह प्रेम जताकर ये रमणियों पर अपना रङ्ग जमाते हैं। ऐसे बेहया मरा नहीं करते। मरते हैं वे, जिनमें सत्य का बल होता है। ऐसे विषय-वासना के पुतले मर जायँ, तो संसार स्वर्ग हो जाय। ये दुष्ट वेश्याओं के पास नहीं जाते। वहाँ जाते इनकी नानी मरती है। पहले तो वेश्या देवी बिना भरपूर पूजा लिए सीधे मुँह बात

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