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प्रतिज्ञा

ऐसा दुरात्मा समझती हो; इसका मुझे गुमान भी न था। वह देवी, जिसके एक इशारे पर मैं अपने प्राणों को विसर्जन करने को तैयार हूँ, मुझे इतना नीच और भ्रष्ट समझती है, यह मेरे लिये डूब मरने की बात है।

पूर्णा ने लज्जित होकर कहा---तुमने यह कैसे समझ लिया कि मैं तुम्हें नीच और भ्रष्ट समझती हूँ?

कमला---आखिर गाड़ी से कूद पड़ने को क्यों तैयार थीं? क्यों बार-बार ताँगा लौटा देने का ज़िक्र कर रही थीं। चादर उतार डालो, ज़रा आराम से बैठो, यह भी अपना ही घर है, कोई सराय नहीं। हाँ, अब बताओ तुम मुझसे क्यों इतना डरती हो? क्या मैं हत्यारा हूँ? लम्पट हूँ? लुटेरा हूँ? उचक्का हूँ? मैंने तुम्हारे साथ ऐसा कौन-सा व्यवहार किया है, जिससे तुमने मेरे विषय में ऐसी राय जमा ली? मैंने तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध मुँह से एक शब्द भी नहीं निकाला। फिर भी तुम मुझे इतना नीच समझती हो। तुम्हारी इस दुर्भावना का एक ही कारण हो सकता है। सुमित्रा ने तुम्हारे कान भरे हैं। आज मैंने देखा, वह तुम्हारे पास बैठी गप्पें हाँक रही थी। तुम उसकी बातों में आ गई। मैं जानता हूँ, उसने मेरे विषय में खूब ज़हर उगला होगा। मुझे दग़ाबाज़, कमीना, लम्पट सभी कुछ कहा होगा। यह सब केवल इसलिये कि तुम्हारा दिल मुझसे फिर जाय। मैं उसकी नस-नस पहचानता हूँ। वह अगर मुझे अपनी मुट्ठी में रख सके, तो मैं उसका उपास्य, स्वामी ईश्वर सब कुछ हूँ। उसकी मुट्ठी में न रहूँ, तो लम्पट दुष्ट धूर्त हूँ। इसके लिये यह असह्य कि मैं किसी की ओर आँख उठाकर देख भी

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