लूँ। नहीं, वह मुझे अपना कुत्ता बनाकर रखना चाहती है। नित्य उसके पीछे दुम हिला हिलाकर दौड़ता फिरूँ---उसकी आवाज़ सुनते ही आकर उसके पाँव चाटने लगूँ, तब वह मुझे अपनी मेज़ पर बिठायेगी, गोद में उठाकर प्यार करेगी, चूमेगी, थपकेगी, सहलायेगी; लेकिन कहीं उसके इशारे पर दौड़ा हुआ न आया, तो फिर डण्डा, हण्टर, ठोकर के लिये मुझे तैयार रहना चाहिये। अगर मैं कुत्ता बनकर रह सकता, तो आज मुझ-सा भाग्यवान् मनुष्य संसार में कोई न होता। लेकिन दुर्भाग्य है कि मुझमें वह गुण नहीं। मैं पुरुष हूँ और पुरुष ही रहना चाहता हूँ।
पूर्णा के हृदय से सुमित्रा का जादू उतरने लगा। अस्थिरता दुर्बल आत्माओं का मुख्य लक्षण है। उन पर न बातों को जमते देर लगती है न मिटते। बोली---वह तो सारा अपराध तुम्हारा ही बताती हैं।
"हाँ हाँ, वह तो बतायेंगी ही। और क्या कहती थी?"
"सैकड़ों बातें थीं, कहाँ तक कहूँ? याद भी तो नहीं।"
"तभी तुम मेरे साथ आते घबड़ाती थी। तुम्हें यह बाग़ पसन्द है?"
"जगह तो बुरी नहीं।"
"जी चाहता है, एकाध महीना तुम्हें यहीं रखूँ।"
"सुमित्रा भी रहने पर राज़ी हो तब न!"
"उसे तो मैं भूलकर भी न लाऊँ।"
"तो मैं अकेली यहाँ कैसे रहूँगी?"
"तुम्हारे यहाँ रहने की किसी को ख़बर ही न होगी। तुम्हारे वृन्दा वन जाने की बात उड़ा दी जायगी; पर रहोगी तुम इसी बग़ीचे में।
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