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प्रतिज्ञा

पूर्णा ने निर्भय होकर कहा---मैं घर जाऊँगी। ताँगा कहाँ है?

"घर जाने की अभी क्या जल्दी है। तुम डर क्यों गई"

"ताँगा लाओ, मैं जाऊँगी।"

"इतनी जल्दी तो तुम न जा सकोगी पूर्णा! आखिर एकाएक तुम्हें यह क्या हो गया?"

"कुछ हुआ नहीं, मैं यहाँ एक क्षण भर भी नहीं रहना चाहती।"

"और यदि मैं न जाने दूँ?"

"तुम मुझे रोक नहीं सकते।"

"मान लो मैं रोक ही लूँ?"

कमला ने हँसकर कहा---तुम्हारा शोर सुननेवाला यहाँ है ही कौन? तुम अब मेरे काबू में हो। अब यहाँ से बचकर नहीं जा सकती। दोनों माली मेरे नौकर हैं! बे कभी न आवेंगे। तीसरा आदमी यहाँ मील भर तक नहीं है।

पूर्णा ने कमला की ओर आग्नेय नेत्रों से देखकर कहा---कमलाबाबू! मैं हाथ जोड़कर कहती हूँ, मुझे तुम यहाँ से जाने दो, नहीं तो अच्छा न होगा। सोचो, अभी एक मिनट पहले तुम मुझसे कैसी बातें कर रहे थे? क्या तुम इतने निर्लज्ज हो कि मुझपर बलात्कार करने के लिए भी तैयार हो? लेकिन तुम धोखे में हो। मैं अपना धर्म छोड़ने के पहले या तो अपने प्राण दे दूँगी, या तुम्हारे प्राण ले लूँगी।

कमला ने हँसी उड़ाते हुए कहा---तब तो तुम सचमुच वीर महिला हो। मगर खेद यही है कि यह रङ्ग-मञ्च नहीं है, यहाँ तुम्हारी वीरता पर तालियाँ बजानेवाला कोई नहीं है।

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