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प्रतिज्ञा

थी। उनकी बातें भी कभी-कभी कानों में पड़ जाती थीं। एक माली बदरीप्रसाद को ख़बर देने को दौड़ा गया था। एक घण्टे के बाद सड़क पर से एक बग्घी निकली। मालूम हुआ, बदरीप्रसाद आ गये। आपस में क्या बातें हो रही होंगी? शायद थाने में उसकी इत्तला की गई हो। फिर बग़ीचे से एक ताँगा निकलता हुआ सुनाई दिया। शायद यह डॉक्टर होगा। चोट तो ऐसी नहीं आई, लेकिन बड़े आदमियों के लिए ज़रा-सी बात भी बहुत हो जाती है।

इस वक्त पूर्णा को अपनी उद्दण्डता पर पश्चात्ताप हुआ। उसने अगर ज़रा धैर्य से काम लिया होता, तो कमलाप्रसाद कभी ऐसी शरारत न करता। कौशल से काम निकल सकता था; लेकिन होनहार को कौन टाल सकता है? मगर अच्छा ही हुआ। बच्चा की आदत छूट जायगी। अब भूलकर भी ऐसी नटखटी न करेंगे। लाला ने समझा होगा, औरतजात कर ही क्या सकती है, धमकी में आ जायगी। यह नहीं जानते थे कि सभी औरतें एक-सी नहीं होतीं।

सुमित्रा तो सुनकर खुश होगी। बच्चा को खूब ताने देगी। ऐसी आड़े हाथों लेगी कि यह भी याद करेंगे। लाला बदरीप्रसाद भी ख़बर लेंगे। हाँ, अम्माँजी को बुरा लगेगा। उनकी दृष्टि में तो उनका बेटा देवता है, दूध का धोया हुआ है।

पुलिया के नीचे जानवरों की हड्डियाँ पड़ी हुई थी। पड़ोस के कुत्ते द्वन्द्रियों की छेड़-छाड़ से बचने के लिए इधर-उधर से हड्डियों को ला-लाकर एकान्त में रसास्वादन करते थे। उनमें दुर्गन्ध आ रही थी। इधर-उधर फटे-पुराने चीथड़े, आम की गुठलियाँ, काग़ज़ के रद्दी टुकड़े

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