इसके सामने निकलने में कोई भय नहीं है, तो उसने धीरे से पूछा--- बाबा, गङ्गाजी का रास्ता किधर है?
बूढ़े ने आश्चर्य से कहा-गङ्गाजी यहाँ कहाँ हैं। यह तो मडुआडीह है।
पूर्णा---गङ्गाजी यहाँ से कितनी दूर हैं?
बूढ़ा---दो कोस।
इस दशा में दो कोस जाना पूर्णा को असूझ-सा जान पड़ा। उसने सोचा, क्या डूबने के लिए गङ्गा ही हैं। यहाँ कोई तालाब या नदी न होगी? वह वहीं खड़ी रही। कुछ निश्चय न कर सकी।
बूढ़े ने कहा---तुम्हारा घर कहाँ है बेटी? कहाँ जाओगी?
पूर्णा सहम उठी। अब तक उसने कोई कथा न गढ़ी थी, क्या बतलाती?
बूढ़े ने फिर पूछा---गङ्गाजी ही जाना है या और कहीं?
पूर्णा ने डरते-डरते कहा---वहीं एक महल्ले में जाऊँगी।
बूढ़े ने ठिठककर पूर्णा को सिर से पैर तक देखा और बोला---वहाँ किस महल्ले में जाओगी? सैकड़ों महल्ले हैं।
पूर्णा ने कोई जवाब न दिया। उसके पास जवाब ही क्या था?
बूढ़े ने ज़रा झुँझलाकर कहा---यहाँ किस गाँव में तुम्हारा घर है।
पूर्णा कोई जवाब न दे सकी। वह पछता रही थी कि नाहक इस बूढ़े को मैंने छेड़ा।
बूढ़े ने अब की कठोर स्वर में पूछा---तू अपना पता क्यों नहीं बताती? क्या घर से भाग आई है।
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