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प्रतिज्ञा

भैया के विषय में कोई बात सुनी? अभी महरी न-जाने कहाँ से ऊट-पटाँग बातें सुन आई है। मुझे तो विश्वास नहीं आता।

दाननाथ ने आँखें बचाकर कहा---विश्वास न आने का कारण?

'तुमने भी कुछ सुना है?'

'हाँ, सुना है। तुम्हारे घर ही से चला आ रहा हूँ।'

'तो सचमुच भैयाजी पूर्णा को बगीचे ले गये थे?'

'बिलकुल सच!'

'पूर्णा ने भैया को मारकर गिरा दिया, यह भी सच है?'

'जी हाँ, यह भी सच है।'

'तुमसे किसने कहा?'

'तुम्हारे पिताजी ने।'

'पिताजी की न पूछो। वह तो भैया पर उधार ही खाये रहते हैं।'

'तो क्या समझ लूँ कि उन्होंने कमलाप्रसाद पर मिथ्या दोष लगाया?'

'नहीं, यह मैं नहीं कहती; मगर भैया में ऐसी आदत कभी न थी।'

'तुम किसी के दिल का हाल क्या जानो? पहले मैं भी उन्हें धर्म और सच्चाई का पुतला समझता था। पर आज मालूम हुआ कि वह लम्पट ही नहीं, परले सिरे के झूठे हैं। पूर्णा ने बहुत अच्छा किया। मार डालती तो और भी अच्छा करती। न मालूम उसने क्यों छोड़ दिया। तुम्हारा भाई समझकर उसे दया आ गई होगी?'

प्रेमा ने एक क्षण सोचकर सन्दिग्ध भाव से कहा---मुझे अब भी

विश्वास नहीं आता। पूर्णा बराबर मेरे घर आती थी। वह उसकी ओर

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