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प्रतिज्ञा

कभी आँख उठाकर भी न देखते थे। इसमें ज़रूर कोई-न-कोई पेच है। भैयाजी को बहुत चोट तो नहीं आई?

दाननाथ ने व्यंग करके कहा---जाकर जरा मरहम-पट्टी कर आओ न!

प्रेमा ने तिरस्कार की दृष्टि से देखकर कहा---भगवान् जाने, तुम बड़े निर्दयी हो, किसी को विपत्ति में देखकर भी तुम्हें दया नहीं आती।

'ऐसे पापियों पर दया करना दया का दुरुपयोग करना है। अगर मैं बगीचे में उस वक्त होता या किसी तरह मेरे कानों में पूर्णा के चिल्लाने की आवाज़ पहुँच जाती, तो चाहे फाँसी ही पाता, पर कमलाप्रसाद को जिन्दा न छोड़ता, और फाँसी क्यों होती; क्या कानून अन्धा है? ऐसी दशा में मैं क्या, सभी ऐसा ही करते। दुष्ट, इसे एक अनाथिनि अबला पर अत्याचार करते लज्जा न आई; और वह भी, जो उसी की शरण आ पड़ी थी। मैं ऐसे आदमी का खून कर डालना पाप नहीं समझता।'

प्रेमा को ये कठोर बातें अप्रिय लगीं। कदाचित् यह बात सच्ची सिद्ध होने पर उसके मन में भी ऐसे भाव आते; किन्तु इस समय उसे ऐसा जान पड़ा कि केवल उसे जलाने के लिये, केवल उसका अपमान करने के लिए यह चोट की गई है। अगर इस बात को सच भी मान लिया जाय, तो भी ऐसी जली-कटी बातें करने का प्रयोजन? क्या ये बातें दिल ही में न रक्खी जा सकती थीं?

उसके मन में प्रबल उत्कण्ठा हुई कि चलकर कमलाप्रसाद को

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