पृष्ठ:प्रतिज्ञा.pdf/२०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
प्रतिज्ञा

कोई बातचीत न थी तो वह कमला के साथ अकेले बग़ीचे में गई क्यों? मगर अब वह सारा अपराध कमलाप्रसाद के सिर रखकर आप निकल जायगी। मुझे डर है कि कहीं तुम्हें भी न घसीटे। ज़रा मुझसे एक बार उसकी भेंट हो जाती, तो मैं पूछती।'

दाननाथ के पेट में चूहे दौड़ने लगे। उनके पेट में कोई बात न पच सकती थी। प्रेमा के कमरे के द्वार पर जाकर बोले---कुछ सुना, पूर्णा वनिता-भवन पहुँच गई?

प्रेमा ने उनकी ओर देखा। उसकी आँखें लाल थीं। वह बातें, जो हृदय को मलते रहने पर उसके मुख से न निकलने पाती थीं – कर्तव्य और शंका जिन्हें अन्दर ही दबा देती थी---आँसू बनकर निकल जाती थीं। चन्देवाले जलसे में जाना क्या इतना घोर अपराध था कि क्षमा ही न किया जा सके? वह जहाँ जाते हैं, जो करते हैं, क्या उससे पूछकर करते हैं? इसमें सन्देह नहीं कि विद्या, बुद्धि और उम्र में उससे बढ़े हुए हैं, इसीलिए वह अधिक स्वतन्त्र हैं। उन्हें उस पर निगरानी रखने का हक है। वह अगर उसे कोई अनुचित बात करते देखें, तो रोक सकते हैं; लेकिन उस जलसे में जाना तो कोई अनुचित बात न थी। क्या कोई बात इसीलिए अनुचित हो जाती है कि अमृतराय का उसमें हाथ है---इन में इतनी सहानुभूति भी नहीं, सब कुछ जानकर भी अनजान बनते हैं!

दाननाथ उसकी लाल आँखें देखकर प्रेम से द्रवित हो उठे। अपनी कठोरता पर लज्जा आई। प्रेम की प्रगति जल के प्रवाह की भाँति है, जो थोड़ी देर के लिये लुक जाय, पर अपनी गति नहीं बदल

२०४