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प्रतिज्ञा

तैयार होकर दाननाथ ने आज उसके हृदय पर अधिकार पा लिया। वह मुँह से कुछ न बोली; पर उसका एक-एक रोम पति को आशीर्वाद दे रहा था।

त्याग ही वह शक्ति है, जो हृदय पर विजय पा सकती है!




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