पृष्ठ:प्रतिज्ञा.pdf/२२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५

दाननाथ जब अमृतराय के बँगले के पास पहुँचे, तो सहसा उनके क़दम रुक गये, हाते के अन्दर जाते हुए लज्जा आई। अमृतराय अपने मन में क्या कहेंगे? उन्हें यही ख्याल होगा कि जब चारो तरफ ठोकरें खा चुके और किसी ने साथ न दिया, तो यहाँ दौड़े आये हैं। वह इसी संकोच में फाटक पर खड़े थे कि अमृतराय का बूढ़ा नौकर अन्दर से आता दिखाई दिया। दाननाथ के लिए अब वहाँ खड़ा रहना असम्भव था।

२१८