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प्रतिज्ञा

दान॰---बस, दो-एक बार प्रेमा के साथ बैठे देखा है। इससे ज्यादा नहीं।

अमृत॰---प्रेमा ही उसे ठीक करेगी। जब दोनो गले मिल लेंगी और पूर्णा उससे अपना सारा वृत्तान्त कह लेगी, तब उसका चित्त शान्त हो जायगा। उसकी विवाह करने की इच्छा हो, तो एक-से-एक धनी-मानी वर मिल सकते हैं। दो चार आदमी तो मुझी से कह चुके हैं। मगर पूर्णा से कहते हुए डरता हूँ कि कहीं बुरा न मान जाय। प्रेमा उसे ठीक कर लेगी। मैंने यदि सिङ्गिल रहने का निश्चय न कर लिया होता और वह जाति-पाँति का बन्धन तोड़ने पर तैयार हो जाती, तो मैं भी उम्मेदवारों में होता।

दान॰---उसके हसीन होने में तो कोई शक ही नहीं।

अमृत॰---मुझे तो अच्छे-अच्छे घरों में ऐसी सुन्दरियाँ नहीं नज़र आतीं।

दान॰---यार तुम रीझे हुए हो, फिर क्यों नहीं ब्याह कर लेते। सिङ्गिल रहने का ख्याल छोड़ो। बुढ़ापे परलोक की फ़िक्र कर लेना। मैंने भी तो यही नक्शा तैयार कर लिया है। मेरी समझ में यह नहीं आता कि विवाह को लोग क्यों सार्वजनिक जीवन के लिए बाधक समझते हैं। अगर ईसा, शंकर और दयानन्द अविवाहित थे, तो राम, कृष्ण, शिव और विष्णु गृहस्थी के जुये में जकड़े हुए थे।

अमृतराय ने हँसकर कहा---व्याख्यान पूरा कर दो न! अभी कुछ दिन हुए आप ब्रह्मचर्य के पीछे पड़े हुए थे। इसी को मनुष्य

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