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प्रतिज्ञा

और लकड़ी के खिलौने, मोजे, बनियाइन; स्त्रियों ही के बनाये हुए चित्र अलग-अलग सजाये हुए थे। एक आलमारी में आश्रम में बनी हुई भाँति-भाँति की मिठाइयाँ चुनी हुई रखी थीं। आश्रम में उगे हुए पौधे गमलों में रखे हुए थे। कई दर्शक इस समय भी इन चीज़ों को देख-भाल रहे थे। कुछ बिक्री भी हो रही थी। दो महिलाएँ ग्राहकों को चीजें दिखा रही थीं। यहाँ की रोज़ाना बिक्री १००) के लगभग थी। मालूम हुआ कि सन्ध्या समय ग्राहक अधिक आते हैं।

अब दोनो आदमी अन्दर पहुँचे। एक विस्तृत चौकोर आँगन था, जिसके चारो तरफ बरामदा था। बरामदे ही में कमरों के द्वार थे। दूसरी मञ्जिल भी इसी नमूने की थी। नीचे के हिस्से में कार्यालय था। ऊपर के भाग में स्त्रियाँ रहती थीं। दस बजे का समय था। काम शुरू हो गया था। महिलाएँ अपने-अपने काम पर पहुँच गई थीं। कहीं सिलाई हो रही थी, कहीं मोज़ें, गुलूबन्द आदि बुने जा रहे थे। कहीं मुरब्बे, और अचार बन रहे थे। प्रत्येक विभाग एक योग्य महिला के आधीन था। आवश्यकतानुसार २-३ या ४-५ स्त्रियाँ उसकी सहायता करती थीं। इसी भाँति उन्हें शिक्षा भी दी जा रही थी---आँगन में फूल-पत्ते लगे हुए थे। कई स्त्रियाँ ज़मीन खोद रही थीं, कई पानी दे रही थीं। चारो तरफ़ चहल-पहल थी; कहीं शिथिलता, निरुत्साह या कलह का नाम न था।

दाननाथ ने पूछा---इतनी सुदक्ष स्त्रियाँ तुम्हें कहाँ मिल गई?

अमृत॰---कुछ अन्य प्रान्तों से बुलाई गई हैं, कुछ बनाई गई हैं और कुछ ऐसी हैं, जो नित्य नियम से आकर सिखाती हैं और चार बजे.

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