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प्रतिज्ञा

चली जाती हैं। जज साहब मि॰ जोशी की धर्मपत्नी चित्र-कला में निपुण है। वह ८ स्त्रियों की एक क्लास को दो घण्टे रोज़ पढ़ाने आया करती हैं। मिसेज़ सक्सेना सिलाई के काम में चतुर हैं। वह प्रायः दिन-भर यहीं रहती हैं। तीन महिलाएँ पाठशाला में काम करती हैं। पहले मुझे सन्देह होता था कि भले घर की रमणियाँ अपना समय यहाँ क्यों देने लगी; लेकिन अब अनुभव हो रहा है कि उनमें सेवा का भाव पुरुषों से कहीं अधिक है। परदे का यहाँ पूर्ण बहिष्कार है। चलो, बगीचे की तरफ़ चलें। यह विभाग पूर्णा के अधिकार में है। मैंने समझा यहाँ उसके मनोरञ्जन के लिए काफ़ी सामान मिलेगा, और खुली हवा में कुछ देर काम करने से उसका स्वास्थ्य भी ठीक हो जायगा।

बागीचा बहुत बड़ा न था। आम, अमरूद, लीची आदि की कलमें लगाई जा रही थीं। हाँ, फूलों के पौधे तैयार हो गये थे। बीच में एक हौज़ था और तीन-चार छोटी-छोटी लड़कियाँ हौज़ से पानी निकाल-निकालकर क्यारियों में डाल रही थीं। हौज़ तक आने के लिए चारो ओर चार रविशें बनी हुई थीं और हरेक रविश पर बेलों से ढके हुए बाँसों के बने हुए छोटे-छोटे फाटक थे। उसके साए में पत्थर की बेञ्चें रखी हुई थीं। पूर्णा इन्हीं बेञ्चों में से एक पर सिर झुकाये बैठी फूलों का एक गुलदस्ता बना रही थी? किसके लिए यह कौन जान सकता है?

दोनो मित्रों की आहट पाकर पूर्णा उठ खड़ी हुई और गुलदस्ते को बेंच पर रख दिया।

अमृतराय ने पूछा---कैसी तबीयत है पूर्णा! वह देखो दाननाथ तुमसे मिलने आये हैं। बड़े उत्सुक हैं।

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