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प्रतिज्ञा

सहसा ऊपर से प्रेमा आकर चारपाई के पास खड़ी हो गई! आँखें लाल हो गई थीं!

देवकी ने कहा--रोओ मत बेटी, मैं कल उन्हें बुलाऊँगी! मेरी बात वह कभी न टालेंगे!

प्रेमा ने सिसकते हुए कहा--नहीं अम्माजी, आपके पैरों पड़ती हूँ, आप उनसे कुछ न कहिये। उन्होंने हमारी बहनों की ही खातिर तो यह प्रतिज्ञा की है। हमारे यहाँ कितने ऐसे पुरुष हैं, जो इतनी वीरता रखा सकें? मैं इस शुभ कार्य में बाधक न बनूँगी।

देवकी ने विस्मय से प्रेमा की ओर देखा, लड़की यह क्या कह रही है, यह उसकी समझ में न आया।

प्रेमा फिर बोली--ऐसे सुशिक्षित पुरुष अगर यह काम न करेंगे, तो कौन करेगा? जब तक ऐसे लोग साहस से काम न लेंगे, हमारी अभागिनी बहनों की रक्षा कौन करेगा।

देवकी ने कहा--और तेरा क्या हाल होगा बेटी?

प्रेमा ने गम्भीर भाव से कहा--मुझे इसका बिलकुल दुःख नहीं है अम्माजी, मैं आपसे सच कहती हूँ। मैं भी इस काम में उनकी मदद करूँगी। जब तक आप लोगों का हाथ मेरे सिर पर है, मुझे किस बात की चिन्ता है? आप लोग मेरे लिये ज़रा भी चिन्ता न करें। मैं क्वारी रहकर बहुत सुखी रहूँगी।

देवकी ने आँसू-भरी आँखों से कहा--माँ-बाप किसके सदा बैठे रहते हैं बेटी। अपनी आँखों के सामने जो काम हो जाय, वही अच्छा। लड़की तो उनको नहीं क्वारी रहने पाती, जिनके घर में भोजन का

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