तर सादे ही कपड़े पहनते हैं, फिर स्त्रियाँ क्यों गहनों पर जान देती हैं? पुरुषों में तो कितने ही क्वारे रह जाते हैं, स्त्रियों को क्यों बिना विवाह किए जीवन व्यर्थ जान पड़ता है? बताओ। मैं तो सोचती हूँ, क्वारी रहने में जो सुख है, वह विवाह करने में नहीं है।
पूर्णा ने धीरे से प्रेमा को ढकेलकर कहा--चलो बहन, तुम भी कैसी बातें करती हो। बाबू अमृतराय सुनेंगे, तो तुम्हारी खूब ख़बर लेंगे। मैं उन्हें लिख भेजूँगी कि यह अपना विवाह न करेंगी आप कोई और द्वार देखें।
प्रेमा ने अमृतराय की प्रतिज्ञा का हाल न कहा। वह जानती थी कि इससे पूर्णा की निगाह में उनका आदर बहुत कम हो जायगा। बोली--वह स्वयं विवाह न करेंगे।
पूर्णा--चलो, झूठ बकती हो।
प्रेमा--नहीं बहन, झूठ नहीं है। विवाह करने की उनकी इच्छा नहीं है। शायद कभी नहीं थी। दीदी के मर जाने के बाद, वह कुछ विरक्त-से हो गये थे। बाबूजी के बहुत घेरने पर और मुझ पर दया करके वह विवाह करने पर तैयार हुए थे; पर, अब उनका विचार बदल गया है। और मैं भी समझती हूँ कि जब एक आदमी स्वयं गृहस्थी की झंझट में न फँसकर कुछ सेवा करना चाहता है, तो उसके पाव की बेड़ी न बनना चाहिये। मैं तुमसे सत्य कहती हूँ पूर्णा, मुझे इसका दुःख नहीं है। उनकी देखा-देखी मैं भी कुछ कर जाऊँगी।
पूर्णा का विस्मय बढ़ता ही गया। बोली--आज चार बजे तक