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प्रतिज्ञा

तुम ऐसी बातें न करती थीं, एकाएक यह कैसी काया-पलट हो गई? उन्होंने किसी से कुछ कहा है क्या?

प्रेमा--बिना कहे तो आदमी अपनी इच्छा प्रकट कर सकता है।

पूर्णा--मैं एक पत्र लिखकर उनसे पूँछँगी।

प्रेमा--नहीं पूर्णा, तुम्हारे पैरों पड़ती हूँ। पत्र-वत्र न लिखना, मैं किसी के शुभ संकल्प में विघ्न न डालूँगी। मैं यदि और कोई सहायता नहीं कर सकती, तो कम-से-कम उनके मार्ग का कण्टक न बनूँगी।

पूर्णा--सारी उम्र रोते कटेगी, कहे देती हूँ।

प्रेमा--ऐसा कोई दुःख नहीं है, जो आदमी सह न सके। वह जानते हैं कि मुझे इससे दुःख नहीं, हर्ष होगा, नहीं तो वह कभी यह इरादा न करते। मैं ऐसे सज्जन प्राणों का उत्साह बढ़ाना अपना धर्म समझती हूँ। उसे गृहस्थी में नहीं फँसाना चाहती।

पूर्णा ने उदासीन भाव से कहा--तुम्हारी माया मेरी समझ में नहीं आती बहन, क्षमा करना। मैं यह कभी न मानूँगी कि तुम्हें इससे दुःख न होगा!

प्रेमा--तो फिर उन्हें भी होगा।

पूर्णा-–पुरुषों का हृदय कठोर होता है।

प्रेमा--तो मैं भी अपना हृदय कठोर बना लूँगी।

पूर्णा--अच्छा बना लेना, लो अब न कहूँगी। लाओ बाजा, तुम्हें एक गीत सुनाऊँ।

प्रेमा ने हारमोनियम सँभाला और पूर्णा गाने लगी।



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