पृष्ठ:प्रतिज्ञा.pdf/३३

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होली का दिन आया। पण्डित वसन्तकुमार के लिये यह भङ्ग पीने का दिन था। महीनो पहले भङ्ग मँगवा रक्खी थी। अपने मित्रों को भङ्ग पीने का नेवता दे चुके थे। सवेरे उठते ही पहला काम जो उन्होंने किया, वह भङ्ग धोना था। मोहल्ले के दो-चार लौंडे और दो-चार बेफ़िकरे जमा हो गये। भङ्ग धुलने लगी, कोई मिर्च पीसने लगा, कोई बादाम छीलने लगा, दो आदमी दूध का प्रबन्ध करने के लिए छूटे, दो आदमी सिल-बट्टा धोने लगे। खासा हङ्गामा हो गया।

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